मंगलवार, 26 जनवरी 2010

* पहला मौका था जब शेरघाटी में टेलीफिल्म बनाने की शुरुआत की नीव रखी गयी. पूंजी, कलाकार उत्शाही व्यक्तियों का जैसे अकाल था तूर्रा उनमे उनके काम को लेकर उहपोही को भी दूर करना कम झोखिम का काम नहीं था. नविन सिंह, नविन सिन्हा. भूषण सिंह महमूद आदि सहयोगी कलाकार मित्रो के प्रयास से फिल्म की आधार शिला रखी गयी. बात आई कि निदेशक कौन होंगे मैंने खुद कमान सम्हाली. पर पता चला कि मुंबई में निदेशकों के साथ काम किया हुआ एक आदमी गया में है. पता चलाने पर नाम पता चल गया, नाम अकिल जी . संपर्क बनाया गया. सहयोग के तौर पर साथ देने के लिए तैयार हो गए. अब बारी थी कहानी पर काम करने की. कहानी सतीश मिश्र जी पटना की थी. सतीश भैया ने कहानी की नाक नक्श सुधारी मैंने खुद कहानी की स्क्रिप्ट लिखी . कंजुश नाम को फाईनल किया गया. फिर फिल्म बनी

1 टिप्पणी:

  1. are waah to film to gazab ki hogi.bhai sahab kya aap us film ka naam batenge aur yeh film kab bani taareekh waigairah ???

    aap chaahen to us film ko you tube me load kar sakte hain.

    जवाब देंहटाएं

Powered By Blogger

मेरी ब्लॉग सूची