शनिवार, 11 दिसंबर 2010
शुक्रवार, 4 जून 2010
भारत विकास परिषद् , शाखा शेरघाटी की ओर से गरीवों के बीच वस्त्र दान
स्वर्गीय प्रोफ़ेसर रामदेव सिंह के प्रथम पुण्यतिथि पर २ जून को भारत विकास परिषद् के तत्वावधान में उनके पौत्र सौरभ कुमार के द्वारा गरीबो के बीच वस्त्र का वितरण किया गया . इस अवसर पर सचिव विजय कुमार दत्त और अध्यक्ष राम रतन सिंह के अलावे मुख्य अतिथि के रूप में मुंद्रिका सिंह उपस्थित थे . सभा का सञ्चालन श्रीकांत यादव ने किया.स्वर्गीय प्रोफ़ेसर रामदेव सिंह के पुत्र सतीश कुमार सिंह ने धन्यवाद अर्पण किया
रविवार, 31 जनवरी 2010
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
* पहला मौका था जब शेरघाटी में टेलीफिल्म बनाने की शुरुआत की नीव रखी गयी. पूंजी, कलाकार उत्शाही व्यक्तियों का जैसे अकाल था तूर्रा उनमे उनके काम को लेकर उहपोही को भी दूर करना कम झोखिम का काम नहीं था. नविन सिंह, नविन सिन्हा. भूषण सिंह महमूद आदि सहयोगी कलाकार मित्रो के प्रयास से फिल्म की आधार शिला रखी गयी. बात आई कि निदेशक कौन होंगे मैंने खुद कमान सम्हाली. पर पता चला कि मुंबई में निदेशकों के साथ काम किया हुआ एक आदमी गया में है. पता चलाने पर नाम पता चल गया, नाम अकिल जी . संपर्क बनाया गया. सहयोग के तौर पर साथ देने के लिए तैयार हो गए. अब बारी थी कहानी पर काम करने की. कहानी सतीश मिश्र जी पटना की थी. सतीश भैया ने कहानी की नाक नक्श सुधारी मैंने खुद कहानी की स्क्रिप्ट लिखी . कंजुश नाम को फाईनल किया गया. फिर फिल्म बनी
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
भारतीय कला मंच की शुरुआत उन दिनों हुई थी जब शेरघाटी में नाट्य और कला का उद्ब्हब तो हो गया था,पर पर नहीं निकले थे. जमाना था, बाई जी के नाच ka . मंच सजा तो सुरु हो जाती थीं की बाई जी कहाँ की है. कहाँ से आई है .कितनी है. कितने पैसे में आई है. बिन्देश्वरी सिंह शरीखे कलाकारों ने धुनी रमाई थी. शेरघाटी में कला यूँ बेजार नहीं हो सकती. एक मंच बनाया गया. नाम क्या हो. बड़ी असमंजश की अस्थिति हुई . बकील साहब ने नाम सुझाया. कहा नाम इंग्लिश में हो तो दमदार लगेगी कहा इंडियन आर्ट स्टेज . नाम जाँच गया . विजय दत्त जी को नाम तो पसंद आया पर अंग्रेजी के बज़ह से तय नहीं कर पा रहे थे. तपन जी ने आईडिया सुझाया नाम को अगर हिंदी में रूपांतरण कर दे तो कैसा रहेगा. तो क्या नाम बनेगा????????? नाम रूपांतरित हुआ भारतीय कला मंच .
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